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अगर मापनी हो ऊचाईयाँ मेरे अल्फाज़ो की,_तो मेरे देश की गौरव गाथा पढ़ लेना।_आज सुबह RTU प्रांगण में मे

ABOUT WRITER

seervi writer

 

लेखक परिचय


नाम - सीरवी प्रकाश पंवार 
पिता - श्री बाबूलाल सीरवी
माता - श्री मती सुन्दरी देवी
जन्म - 5 जुलाई 1997
पता - अटबड़ा, तह-सोजत सिटी, जिला- पाली राजस्थान
शिक्षा - इंजीनियरिंग(वर्तमान)
रुचि- लेखक(writer)
पुस्तक-काव्य संग्रह.
संपर्क - 9982661925
      Facebook-www.fb.com/seerviprakashpanwar
       Blog-www.seerviprakashpanwar.blogspot. com
www.ekajeebpal.blogspot.com
www.seervibhasha.blogspot.com

Aai Mataji (Sirvi Samaj) (14).jpg

लेखक के दो शब्द-

मै यहाँ समाज के बहुत सारे मुद्दों से समाज के लोगो को अवगत करवाना चाहूँगा , समाज ऐसे बहूत से मुद्दों से पीड़ित हैं एवम देखा जाए इन ही मुद्दों से समाज पिछड़ा हुआ है। मेरा उद्देश्य बस इतना सा है कि समाज के लोगो को हकीकत से रूबरू करवा सकूँ जिससे समाज जागरूक बने और समाज के लड़के-लड़किया अन्दर से खुद को मजबूत बनाए जिससे वो सफल बन सके और आए दिन अपने जन्म-दाता पर उठने वाली उंगुलियों को दबा सके। मेरा उद्देश्य किसी की स्वतंत्रता छीनना नही है और कभी होंगा भी नही।
जब मै खुद ऐसी समस्याओ से गुजरा और समाज की समस्याओं देखा तो लिखने की सोची और मै बताना चाहूँगा की वक्त किसी पर अँगुली उठाने का या फिर आलोचना करने का नही है वक्त आत्मचिंतन का है।

मेरे लिखने का उद्देश्य कभी भी मेरा धर्म-आई धर्म के ख़िलाफ़ जाना कतई नहीं है और न ही होगा।
मैने हाल ही में समाज के कुछ मुद्दों की छानबीन की तो पता चला कि समाज के कुछ दरिन्दे लड़कियों को पैसो से तोल रहे है। यह बात मेने अपने कुछ लोगो के बीच मुद्दा बनाई तो मुझे कुछ जवाब मिले तो मैने उन्ही जवाब से समाज के लोगो को अवगत करवाना चाहूँगा कि किस तरह समाज के लोग इन कुरूतियो को जकड़ कर बैठे है।

नव समाज को दो रूपो में देख सकते है-एक बालक वर्ग और दूसरा बालिका वर्ग।

हमारा समाज पुरातत्व के आधार पर देखा जाए तो समाज पुरुष प्रधान रहा हैं और यही बात  समाज को बहूत सारी कुरीतिया प्रदान करता है।
ऐसे तो देखा जाए तो समाज मे ऐसे बहुत सारे मुद्दे है जिनकी वजह से समाज पिछड़ा हुआ है और समाज प्रगति की राह पर अटका हुआ है। मेरे कहने का यह मतलब कतई नही होंगा कि समाज का विकास पूरी तरह रूक चुका है परन्तु कुछ मुद्दे है जो समाज के पास एक पहचान होते हुए भी उस पहचान के क़ाबिल नही बनने देती। मैने बहूत कोशिश कर ली उन मुद्दों को अलग-अलग जगह पर अलग-अलग माध्यमों से समाज को अवगत कराने की और समाज को जाग्रत करने की, पर समाज के कुछ बुद्दिजीवियों की वजह से वो मुद्दे सिर्फ मुद्दे ही बने रह जाते है। मै आज फिर समाज के अपने लोगो के बीच आग की लपटें उठवाना चाहता हूँ जिससे मेरा उद्देश्य, मेरी सोच और मेरे कर्म को माँ आई कि ज्योति की तरह केशर रूपी रंग लग सके।

मै सबसे पहले अपने मुद्दे को स्पष्ट कर दूँ जो कि "लडकियो" से जुड़ा हुआ है। हालांकि देखा जाए तो यह एक सामान्य मुद्दा है जिसे बहूत सारे लोगो ने अलग -अलग माध्यमों से समाज के लोगो को अवगत कराने की कोशिश की, पर मै इसको अलग तरीके से प्रस्तुत करना चाहूँगा।

मेरी नज़र मै इस मामले में समाज का हर एक सामान्य व्यक्ति धर्मसंकट की स्थिति में फंसा हुआ है। वो यह तक सोचने के मजबूर हो जाता है कि उसने लड़की पैदा करके गलती तो नही कर दी।
ये बात मुद्दा दो वजह से बनती है-

अगर पहली वजह की बात कर तो वो "समाज के लोगो की सोच"।
ये बड़ा ही गंभीर मुद्दा हैं क्योंकि समाज के बहूत सारे लोग पढ़ाई के खिलाफ हैं, भले ही वो लड़का हो या लड़की।
पर बात अगर लड़की की करे तो लड़की के माता-पिता को एक बार तो लग जाता है कि मैने कही गलती तो नही कर दी लड़की पैदा करके। क्योकि अगर वो लड़की को पढ़ाए तो लोगो के ज़ुबान बन जाते है और अगर न पढ़ाए तो भी। अगर कोई लड़की को पढ़ाता है तो लोग अपनी निजी, नीच सोच से राय देने लग जाते हैं, क्योकि उनमे खुद की लड़कियों को पढाने जितनी शक्ति तो नही है वो सिर्फ टांग खीचने का काम कर सकते है जिसे मारवाड़ी में "थारी मारी" कहते है।  साहब देखा जाए तो समाज मे अगर कोई व्यक्ति लड़की को पढ़ा दे तो, दो लोगो के बीच मे बैठने के लायक नही रह सकता है।
इसे मैं एक उदारहण से बताना चाहूँगा, मैं यह नाम उजागर तो नही करूँगा परंतु अपने ही सीरवी समाज के एक पढ़े लिखे की सोच बताना चाहूँगा जो किसी विद्यार्थी से यह लिखवा कर लेना चाहता है कि वो पढ़ रहा है तो नोकरी का लगना तय है। यह बात मेरे दिमागी संतुलन पर बहूत प्रभाव डालती है क्यो कि यह बात किसी अनपढ़ ने नही बल्कि इस सरकारी सेवक ने कही। और यह बात मुझे इतना प्रभावित नही करती जितना कि यह मेरे साथ नही होती, परन्तु माँ आई जी की करामत थी कि यह मेरे साथ ही हुई। ऐसी सोच रखने वाले अक्सर खूद के बच्चों को पढ़ा नही पाते परतु किसी ओर को ताने मार-मार कर पढाने भी नही देते।
इसी बात के साथ मे समाज के लोगो की एक ओर नीची सोच की बात यह रखना चाहूँगा जिसमे समाज के लोगो का अपने ही लोगो की बातों को अपवाह बनाना या बातो का बतंगड़ बनाना। समाज के लोग समाज के लड़कों और समाज की लड़कियों के बीच एक दूरी कायम रखना चाहते है जिससे समाज मे समान रूप से विकास नही हो पाता है। समाज के लोग छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना कर उनका लड़कियों का समाज के बीच जीना हराम कर दिया जाता है। मैं बताना चाहूँगा कि जो भी लोग ऐसा करते है वो अपनी निजी दुश्मनी का बदला लेने के लिए अफवाहों को रंग चढ़ाते है जिससे समाज के ऊपर कलंक लगता है।
जहाँ तक दूसरे मुद्दे से मेरी सोच की इन नकारात्मक छवी आप के दिमाग में बनेगी परन्तु हकीकत, हकीकत होती है उसके लिए में गलत सिद्ध होऊ मुझे कोई फर्क नही पड़ता। मेरा मुद्दा यहा "आधुनिकता की दौड़ में गलत राह पर जाना"। भले ही मैने पहले कह दिया कि समाज के लोग टिक्का-टिप्पणी ज्यादा करते है अनावश्यक मुद्दों पर, परन्तु मेरा मानना यह भी है कि अगर हम कुछ गलत करेंगे तो लोगो का अंगुली उठाना तय है और उस समय जो अंगुली उठता है वो दर्पण होता है आप के लिये। अगर हम मुद्दे की बात करे तो आधुनिकता आप के शिक्षा, व्यवहार, तकनीकी, सोच जैसी चीजों में अच्छी होती है, न कि आप की संस्कृति, रवैए, सामाजिक मीडिया से चिपकना जैसी खराब चीजो में नहीं। मेरे कहने का ये मतलब कतई नही होगा कि समाज की नई पीढ़ी को सामाजिक मीडिया से दूर रखा जाए परन्तु यह भी नही होना चाहिए कि आपके सामाजिक मीडिया की छूट देने से वो उद्देश्य से भटक जाए। पढ़े-लिखे लोगो को थोड़ी ये मेरी सोच अजीब लगी होंगी परन्तु बताना चाहूंगा कि हद से ज्यादा हर एक चीज नुकसान पहुचाती है और अगर इन चीजों के पहले एक सीमा तय करते है तो ये लोग समाज पर स्वतंत्रता छिनने का आरोप लगाते हैं। अगर सीमा तय नही करेंगे तो गलत रास्ते अपनाने लगेंगे और फिर वो ही समाज पर कलंक लगाते है।
मैं भी मानता हूँ ये सबकी स्वतंत्रता है परन्तु इसका परिणाम तो माँ-बाप को ही भुगतना पड़ता है जिससे उनको समाज मे बहूत कुछ सुनना पड़ता है।  मै यह नही कह रहा कि उन्हें सामाजिक मीडिया से दूर रखा जाए। सामाजिक मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है व्यक्ति को निपुर्ण बनाने में।
इस मुद्दे का समाधान यही है कि समाज के लोग अपने लड़के और लड़कियों का ध्यान रखे, उनके रहन-सहन, चाल-चलन का पूरा धयान रखे। उनके ऊपर बंदिशे नही थोपे बल्कि उन्हें उनके लाभ और हानि के बारे बताए, उनका उपयोग बताये और दुरुपियोगो से दूर करे।
समाज के लोगो को अपने बच्चों को सही और गलत में फर्क करना बताए जिससे वो अपने रास्ते खुद चुन सके, उन्हें सही-गलत लोगो की परख कराए जिससे वो गलत लोगो के संपर्क में नही आए और गलत लोगो से प्रेम जाल में फसने से बचे।
  अगर समाज के लोग, समाज की समितियाँ, समाज सेवक, समाज का पढा हुआ वर्ग अगर इस मुद्दे को गंभीरता से नही लगे तो समाज अपनी पहचान खो जाएगा। ये मुद्दे पेसो से या सिर्फ बातो से नही खत्म हो सकते है इनके लिए समाज के हर एक व्यक्ति को आगे आना पड़ेगा।

समाज में कुछ कुरुतिया जड़ जमा कर बैठी हैं। मैं यह नही बोल रहा कि उन्हें हटाना नामुमकिन है, अगर समाज एकजुटता की एक चरम स्थिति पैदा कर दे तो किसी भी कुरीति को हटा सकते है।
जैसा कि मैने पहले भी बताया है कि समाज पुरुष प्रधान समाज रहा है तो ज्यादातर कुरीतिया महिलाओ को लेकर ही है। इसी तरह समाज की यह सोच केंसर  की तरह फैली हुई हैं जो हर रोज समाज को अंदर से खोखला कर रही है। हम सभी ने एक बात तो सुनी ही होंगी कि सगाई के लिए लड़की दो और लड़की लो। जब यह बात सुनता हूं तो पुराने समय की एक बात याद आ जाती है जिसमे व्यापार में मुद्रा का प्रचलन नही होता था तो लोग चीजो का आदान प्रदान करते थे, परन्तु वह कभी जीवों की बोली नही लगती थी। पर आज समाज की यह स्थिति बनी हुई है कि अगर आप के पास लड़की नही हो तो आप सगाई की बात नही कर सकते। मैं समाज के लोगो से पूछना चाहूँगा कि क्या यह गलत है कि "यत्र नारी पूज्यते तंत्र रमन्ते देवता'', या फिर नारियो को घर की लक्ष्मी कहना गलत है? अगर ये गलत नही हो तो समाज मे लड़कियों की शादी पैसे लेकर कौनसा समाज को बाजारवाद की चपेट में क्यो लाना चाहते है ? क्यो हर रोज लड़कियों से पैसो से घर भरे जाते है? क्या हमारा आई धर्म और दीवान धर्म लड़कियों के बाजारीकरण का कहते है?
क्या बेल के ग्यारह नियमो में कही लड़कियों को पैसो से तोलने की बात कही है? अगर सीरवी जाती के नियमो, आई धर्म, दीवान धर्म और बेल के ग्यारह नियमो में ऐसा कहा गया हो तो मेरे आगे-पीछे से सीरवी हटा दो और अगर ऐसा कही नही लिखा हो तो अपने समाज में ऐसा क्यो होता है? क्यो समाज मे ऐसा करके हीनता की भावना लाई जाती है? क्यो ऐसे मुद्दों पर पंच-पंचायत बैठ जाती है? ये हक़ीक़त है परन्तु कोई इसे स्वीकारने के लिए तैयार क्यो नही?
साहब, बहूत बुरा लगा होंगा क्यो की मैने कुछ बाते समाज के खिलाफ लिख ली, मगर बताना चाहूँगा की ये हकीकत है औऱ इसे स्वीकारना पड़ेगा।
यह कुरीति किस तरह समाज को पीछे धकेल रही उसे मै कुछ मुद्दों से स्पष्ट करना चाहूँगा-
साहब, अगर हम मुद्दों की बात करे तो सबसे पहला तो यही हैं कि लड़की की स्वतंत्रता छीनी जा रही है। उससे न ही पूछा जाता है कि उसे लड़का पसंद है या नही।
मै यहाँ एक सवाल पूछना चाहूँगा उन माँ-बाप और बिगडेबोलो से, कि ऐसा क्यों? क्यो उससे एक बार भी उससे उसकी पसंद नही पूछी गयी? क्या उनका इतना भी हक़ नही कि वो अपना जीवन साथी खुद चुने?
साहब धिक्कार है मुझे समाज के उन लोगो पर जो ऐसे फैसले लेते हो। इसी कुरीति की जड़ ने समाज को बालविवाह जैसी प्रथा को जन्म दिया था परन्तु माँ आई जी की कृपा से बालविवाह पूर्णतः खत्म हो चुकी है।
मै बताना चाहूँगा कि इससे समाज के शैक्षिक स्तर और लड़कियों के शैक्षिक स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है और लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दी जाती है।
समाज का यह तीसरा चरण है जिसमे समाज पहले चरण में कृषी का बोलबाला था, दिव्तीय चरण में व्यापार का बोलबाला रहा और तृतीय चरण जो अभी कुछ सालों में शरू हुआ है इसमे शिक्षा के जगत में बोलबाला होंगा। समाज ने पिछले दोनो चरणों मे अपना नाम कमाया है और तृतीय चरण समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगा। परन्तु अब जो वक्त चल रहा है वो दिव्तीय से तृतीय चरण में परिवर्तन का है। यह परिवर्तन समाज मे बुराइयों को लेकर आ गया। समाज के कुछ बुद्धिजीवी 'न पढ़ाएंगे और न ही पढ़ने देंगे' सोच वाले है। ये लोग अपने आप को वक्त की मांग के अनुसार बदलना पसंद नही करते है और इसी बीच समाज की महान प्रतिभाएँ कही दब रही है जो समाज के इस परिवर्तन में बाधा डाल रही है।
यहाँ से उत्पन हुई ये कुरीति समाज मे लड़कियों के लिए एक अलग दृष्टिकोण पैदा कर दिया जिसमें बहूत सारी प्रतिभाए उलझ चुकी है। इसी के चलते बचपन मे सगाई और शादी, जिसका कोई मतलब ही नही निकलता वो तय हो जाती है, जिन्होंने कभी पल भर चेहरा भी न देख हो वो जीवन साथी तय हो जाता है और जो उसके लायक भी न हो वो उसके गले मे लटका दिया जाता है जो कभी भी सही नही हो सकता है। 
एक बात तो हम सभी ने सुनी होंगी कि "एक लड़की दो घर का उद्धार करती है" अगर इस बात में पल भर की सच्चाई है तो समाज फिर भी इन कुरीतियों से क्यो जड़ा हुआ है?

मेरा उद्देश्य सिर्फ समाज के लोगो को जाग्रत करना है। समाज के कार्यक्रमो में जगह न मिलने और विद्यार्थी जीवन में समय की कमी की वजह से समाज के लोगो को हकीकत से रूबरू नही करा सका। 

यह तो बेवकूफो वाली बात हो जाती है कि आप और मैं एक सामाजिक मीडिया पर बैठकर समाज को बदलने की बात करे परन्तु आज समाज की और मेरी खुद की स्थिति को देख कर मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नही बचा है। आज एक सोचने का विषय है कि समाज में लड़कियों की स्थिति कितनी मजबूत है। जैसा कि मैने पहले भी कही बार बताया है कि हमारा समाज तीसरे चरण की ओर अग्रसर हो रहा है जिसमे पहला चरण कृषि जगत का था, दूसरा चरण व्यापार जगत का था और तीसरा चरण आज शिक्षा जगत का है जिसमे समाज के युवा भली भांति अपनी प्रतिभा दिखा रहा है। समाज के युवाओं का शिक्षा जगत में प्रगति को देख कर हम सभी अपने आप पर गर्व करते है और बात यही खत्म हो जाती है। हमने कभी भी लड़कियों के शिक्षा स्तर पर अपना ध्यान नही दिया है यहाँ तक की 10 लड़को के साथ अगर 1 लड़की भी किसी शिक्षा स्तर को पर कर ले तो खुद पर गर्व करने लग जाते है। रुको!! सुनो!! जरा सोचो!! क्या 10:1 का यह अनुपात पूर्णतः अपने समाज को विकसित बना देगा? 10:1 तो बहुत कम है आज सीरवी समाज लगभग 50:01 के अनुपात से भी प्रगति नही कर रहा। क्या समाज की यह स्थिति सही है? क्या इस प्रकार के अनुपात समाज को सही दिशा दे पाएगा?

आप, मै और समाज का हर एक व्यक्ति जनता है कि समाज में लड़कियों की स्थिति क्या है और हमे यह कायरता स्वीकार करनी पड़ेगी की हमे पता होते हुए भी हमने इस पर ध्यान नही दिया। कोई बात नही कोनसा जमाना बीत गया बल्कि मैं तो कहूंगा कि यही सही समय है ऐसी समस्याओ से पर्दा हटा कर इन्हे हटाने का। 

समाज में लड़कियों की स्थिति कमजोर करने वाले तत्वों पर विचार करते है। अगर समाज आज ऐसी स्थिति पर खड़ा है तो उसकी एक ही वजह थी 'पुरुष प्रधान समाज'। परन्तु वक्त के चलते यह पूर्णतः खत्म ही चूका है मगर जो कायरता वाला डर और लालच बैठा हुआ है समाज के लोगो के दिलो में, वो कही ना कही समाज में लड़कियों को आगे बढ़ने से रोक रहा है।

आज यहाँ पर बात डर और लालच की हुई है तो मै लालच से शरू करना चाहूंगा। साहब लालच, समाज में युवा लड़को की वजह से होती है जब समाज के लड़के खुद की काबिलियत छोड़ देते है तो उनकी सगाई करवाने के लिए समाज में आमने सामने की रीत को अपना दिया। हालांकि समाज में लिंगानुपात स्तर भी सही है मगर आज कल पैसो के चक्कर में भी आमने सामने सगाई की रीत को अपनाया जाने लगा है। जिससे लड़को के पढ़ाई के रास्तों को छोड़ने पर लड़कियों को भी पढ़ाई से दूर कर दिया जाता है जिससे आने वाले समय में लड़की शादी के लिए मना नही कर दे। इस प्रकार की स्थिति लोगो के मन में अपने घर को मजबूत बनाने के लिए लालच जैसी स्थिति पैदा करवा देता है। समाज में लड़कियों के शिक्षा स्तर को गिराने का यह एक प्रमुख वजह रही है। यहाँ पर हमारे ऊपर एक सवाल आकर खड़ा हो जाता है कि समाज के लड़को की नाकामी की वज़ह से लड़कियों के जीवन को पूर्णतः बर्बाद करना जरूरी है? समाज के लोग पढ़ी हुई लड़की की अपूर्ण पढ़े हुए लड़के के साथ सगाई करवाने से अपने पुरुषार्थ को खतरे में नही डालना चाहते परन्तु ऐसा न करके और लड़कियों के शिक्षा के सपनों को तोड़ कर अपने पुरुषार्थ को सिद्ध करने में सफल नही हो पाते।

मेरी जिज्ञाषु प्रवति कही बार मेरे अपनों को भी सवालो के घेरे में खड़ा कर देती है परन्तु यह वजह मुझे लिखने से रोकने के लिए मजबूर नही कर सकता। हमने एक बात सुनी ही होंगी कि हर एक सफल व्यक्ति के पीछे औरत का हाथ होता है परन्तु किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति को सफल बनाने के लिए औरत की जिंदगी खराब करना पूर्णतः गलत है और इस करने पर आप सवालो के घेरे में होंगे।

अब बात डर की करते है, वास्तविकता में यह डर कायरता की वजह से होता है। समाज में लड़की के किसी लड़के(समाज का या फिर अन्य जाती का) के पीछे भागने, अमान्य संबंध बनाने और माँ- पापा की बात न मानने जैसी घटनाओं से लोगो के मन में एक डर से बैठ सा गया है जिससे वो लड़की को मजबूत बनाने की बजाए अपनी लड़की पर पाबन्दी लगा देते है और उनकी शिक्षा पर रोक लगवा देते है जो उनकी कायरता का प्रमाण है। समाज के लोगो को लड़कियों पर पाबन्दी की बजाए उन्हें अंदर से मजबूत बनाना चाहिए, उन्हें समाज में व्याप्त आपराधिक तत्वों से अवगत करवा कर लड़कियों को मजबूत बनाना चाहिए न की उन्हें डरा धमका कर घर में बैठा देना चाहिए। समाज के लोगो में ऐसी कायरता की वजह से लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा कर उन्हें बिना उम्र के ही काम करवाना और जल्दी शादी करवाने जैसी घटनाएं सामने आती है। समाज परिपूर्ण तब ही बन पाएगा जब समाज के लड़के और लड़कियां समान रूप से आगे बढ़ेंगे क्यों कि ताली एक हाथ से नही बजती और गाड़ी एक पहिये पर चलना भी मुश्किल है।

 

एक कलम कभी किसी व्यक्ति समुदाय से जुडी बाते नही लिख सकती पर जब बात देश सुधारने की आती है तो बात समाज सुधार से शरू होती है और जब मेरे ही समाज में छोटी सोच व्याप्त है तो पहले उसे खत्म करना होंगा क्यों कि एक ओर देश की सर्वोत्तम संस्थाओं और पदों पर महिलाएँ अपना वर्चस्व जमा रही है और हम लालच और डर की वजह से उन्हें घर से नही निकलने देते और उन्हें शिक्षा से दूर कर देते है तो ऐसी स्थिति में पहले समाज को सुधारना पड़ेगा। और कलम अपना धर्म छोड़ समाज को लिखने में मजबूर हो तो समझ लेना चाहिए कि समाज निम्न स्तर पर व्याप्त है। अब इसे हम खुद और कलंक समझ कर सुधरने की कोशिश करे या फिर इंकार करके घमंड में घूमे यह हमें निर्धारित करना है।

अगर मेरी बात कही भी किसी को बुरी लगी हो तो माफ् करे, मै एक लेखक हूँ तो समाज की इन कुरूतियो को होते नही देख सकता इसीलिए मैंने लिखने का प्रयास किया और ऐसे सतत जारी रहेगा।

Specially thanks for "Dear_cute"

And

Mukesh seervi

 सीरवी समाज एक नज़र में

सीरवी समाज की कुरुतिया

Writer and Editor Team-
Seervi Prakash Panwar
And
Dear_Cute
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